Thursday, October 23, 2008

ग्रह दशा

किस-किस का मैं ध्यान धरूं
और मंत्र कौन सा मनन करूं
इन ग्रहों की चाल है उल्टी
किस-किस का मैं भजन करूं

कोई कहे शनीचर आया
कोई कहता राहू छाया
कोई ये बतलाये मुझको
जीवण ना देता है गुरू

राशी में ये सूर्य नीच का
तंग करता है ग्रह बीच का
स्याणा ये समझावण लाग्या
दे रूपये मैं जाप करूं

पंडित कहे तेरे सर पे चंदर
दूध चढ़ाया कर तू मंदर
गर तू देवै मनै दक्षिणा
तेरे नाम का हवन करूं

कोई कहता भारी मंगल-बुध
शुक्र को अपने रखिये शुद्ध
हो लिया तंग रह गया दंग
परशाद बांटता रोज फिरूं
--सतबीर गुर्जर

2 Comments:

Anonymous said...
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योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह सतबीर जी,
अच्छी व्यंग्य रचना....
आपको बहुत बहुत बधाई............